समाजशास्त्र की प्रकृति( nature of sociology)
कुछ समाजशास्त्री समाजशास्त्र को विज्ञान मानते हैं कुछ समाजशास्त्री मानवीय अध्ययन की शाखा मानते हैं आज भी समाज शास्त्रियों में इस संबंध में मत भिन्नता पाई जाती है कि समाजशास्त्र विज्ञान है या नहीं अथवा क्या यह कभी विज्ञान भी बन सकता है |अगस्त काम्टे समाजशास्त्र को सदैव एक विज्ञान मानते रहे हैं और आपने तो इसे " विज्ञानों की रानी " की संज्ञा दी है| वास्तव में किसी विषय का विज्ञान होना या विज्ञान माना माना जाना प्रतिष्ठा सूचक था| अतः कुछ समाजशास्त्री समाजशास्त्र को विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते थे| ऐसा प्रयास करने वाले विद्वानों में दुर्खीम, मैक्स वेबर तथा परेटों आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं |
समाजशास्त्र को विज्ञान नहीं मानने वाले विद्वानों का कहना है कि यह विज्ञान कैसे हो सकता है ,जबकि इसके पास कोई प्रयोगशाला नहीं है, जब यह अपनी विषय सामग्री मापने में समर्थ नहीं है और जब यह भविष्यवाणी भी नहीं कर सकता है| तो उसे विज्ञान कैसे माना जा सकता है सी डब्ल्यू मिल्स ने समाजशास्त्र को विज्ञान मानने की अपेक्षा एक क्राफ्ट मानने का तर्क दिया है रॉबर्ट वीरस्टडी का कहना है कि समाजशास्त्र का उचित स्थान केवल विज्ञानों में ही नहीं है वर्ण मानवीय मस्तिष्क को स्वतंत्र बनाने वाले कला के विषय में भी है |स्पष्ट है कि समाजशास्त्र की प्रकृति के संबंध में विवाद पाया जाता है कुछ लोग इसे विज्ञान मानते हैं जबकि कुछ अन्य ऐसा नहीं मानते हैं
समाजशास्त्र की प्रकृति को समझने से पहले हमें समाजशास्त्र एक विज्ञान क्यों हैं ?और समाजशास्त्र एक विज्ञान क्यों नहीं है? पर विचार करना होगा:- समाजशास्त्र एक विज्ञान क्यों हैं ?क्योंकि इसमें:- 1-वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग होता है
2-भविष्यवाणी करने की क्षमता है
3-तर्क की प्रधानता है
4- वैज्ञानिक पद्धतियों में वस्तुनिष्ठता पर विशेष बल दिया जाता है
5-सिद्धांतों की स्थापना की जाती है
6-सिद्धांतों की पुनरपरीक्षा संभव है
7- सिद्धांत सार्वभौमिक हैं
8-कार्य कारण संबंधों की विवेचना की जाती है
9- क्या है का उल्लेख किया जाता है
10- तत्वों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण किया जाता है 11-अवलोकन द्वारा तथ्यों की को एकत्रित किया जाता है
12-ज्ञान का आधार वैज्ञानिक पद्धति हैं
समाजशास्त्र एक विज्ञान क्यों नहीं है ?क्योंकि इसमें :- 1-वैज्ञानिक पद्धतियों का अभाव है
2-सामाजिक घटनाओं एवं व्यवहारों की जटिलता पाई जाती है
3- सामाजिक घटनाओं एवं व्यवहारों की परिवर्तन शीलता पाई जाती है
4- मापने की समस्या आती है
5-प्रयोगशाला की कमी होती है
6-वस्तुनिष्ठता का अभाव पाया जाता है
7-सिद्धांतों में सार्वभौमिकता का अभाव होता है
8-अमूर्तता पाई जाती है
9-स्वतंत्रता तथा अनिश्चितता होती है
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