प्रभावशाली शिक्षण में शिक्षक की भूमिका

शिक्षण एक कला है , शिक्षक सदैव समाज में पूजनीय रहा है कहीं इसे शिक्षक  ,कहीं गुरु, कहीं अध्यापक, कहीं टीचर  नाम से पुकारा जाता है लेकिन सभी का कार्य समाज का पथप्रदर्शक के रूप में ,मार्गदर्शक के रूप में, सिखाने वाला एवं आदर्श रूप में रहा है शिक्षक समाज का दर्पण होता है यह राष्ट्र निर्माता होता है शिक्षा का कार्य छात्रों में जीवन का निर्माण करना होता है शिक्षक अंधकार से उजाले की तरफ ले जाने वाला होता है मात पिता के बाद यदि इस संसार में कोई पूजनीय है तो वह शिक्षक है प्राचीन काल से ही शिक्षक के सामने सबसे बड़ी चुनौती कक्षा कक्ष में शिक्षण को  प्रभावशाली , रुचिकर बनाए रखना रहा है  छात्र शिक्षण को तनाव के रूप में ने लेकर खेल के रूप में लें, उत्साह के रूप में लें, मनोरंजन के रूप में लें ऐसा वातावरण  कक्षा कक्ष में करने के लिए अध्यापक को निम्न प्रयास करने होंगे:-
1-अध्यापक मित्र के रूप में:-
यदि अध्यापक छात्रों के साथ एक अच्छे मित्र की तरह, मात-पिता की तरह घुल मिलकर कक्षा का शिक्षण कार्य  करता है तो निश्चित रूप से  बच्चे की कक्षा में आने की आवर्ती बढ़ेगीऔर वह अध्यापक के शिक्षण कार्य में रुचि भी लेगा जिससे बच्चे की शिक्षा के स्तर में सुधार देखने को मिलेगा
2- अध्यापक भी अपने पीरियड्स रोजाना ले:-
जब आप  अपने पीरियड रेगुलर लेता है तो बच्चों में भी उस अध्यापक के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रहता है तथा वह सदैव उस अध्यापक का पीरियड लेने का प्रयास करते हैं अध्यापक के इस गुण के कारण भी बच्चों के शिक्षा के स्तर में काफी सुधार देखने को मिलता है
3- शिक्षण का कार्य उदाहरणों के द्वारा:-
जब अध्यापक किसी विषय वस्तु को विभिन्न उदाहरणों कहानी  या फिर प्रसंग के द्वारा बच्चों के सामने रखता है तो बच्चे उसमें काफी रुचि लेते हैं तथा बच्चे इस प्रकार के शिक्षण को बोझ ने समझ कर एक खेल के रूप में लेते हैं जिससे बच्चों में शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उभर कर आता है और बच्चों के शिक्षा के स्तर मैं भी काफी सुधार देखने को मिलेगा
4- बच्चों को भी पढ़ाने का मौका :-
अध्यापक किसी विषय वस्तु को बच्चों को सिखाता है तो निश्चित रूप से बच्चे उसे 100% नहीं सीख पाते हैं यदि बच्चों को कह दिया जाए कि कल किन्हीं दो बच्चों से जो आज मैंने आपको सिखाया है उसी को आप मेरे स्थान पर खड़े होकर अन्य बच्चों को सिखाने का प्रयास करोगे तो निश्चित रूप से बच्चे घर पर जाकर उस विषय वस्तु के बारे में विभिन्न पुस्तकों की सहायता से  सीखने का प्रयास करेंगे और कुछ बच्चे तो ऐसे निकल कर आएंगे कि वह अध्यापक से भी अच्छा उस विषय वस्तु को सिखाने का  प्रयास करेंगे इससे बच्चों में प्रतियोगिता की भावना का विकास होता है और बच्चों के शिक्षा के स्तर में सुधार देखने को मिलता है
5- सिखाते समय विषय वस्तु को दोहराना :-
अध्यापक जब किसी विषय वस्तु को बच्चों को सिखा रहा होता है तो कक्षा में उसे बीच-बीच में दोहराना चाहिए जिससे यदि किसी बच्चे के एक बार में समझ नहीं आया है तो वह दूसरी बार में उसकी समझ में आ जाता है और तीसरी बार में तो सभी को स्पष्ट हो जाता है इस प्रकार के शिक्षण में सभी बच्चे सकारात्मक रूप से रूचि लेते हैं तथा निश्चित रूप से शिक्षा के स्तर में आपको सुधार देखने को मिलेगा
6- बच्चों का मनोबल अवश्य बढ़ाएं:-
कक्षा में बच्चा यदि अच्छे नंबर ला रहा है समय पर कार्य करके दिखाता है  अनुशासन में रहता है आपके प्रश्नों का उत्तर देता है दूसरे बच्चों से लड़ता झगड़ते नहीं है अध्यापकों का कहना मानता है निश्चित रूप से ऐसे बच्चों का समय समय पर मनोबल बढ़ाते रहना चाहिए उनकी पीठ थपथपाते रहना चाहिए ऐसा करने सेअन्य बच्चे भी इस प्रकार का व्यवहार करना सीखते हैं जिससे निश्चित रूप से शिक्षण तथा शिक्षा के स्तर में सुधार आता है
7-बच्चों को प्रेरक कहानियां अवश्य सुनाएं:-
बच्चों को सप्ताह में एक बार निश्चित रूप से विभिन्न प्रकार की प्रेरक कहानियां सुनाई जानी चाहिए यदि हो सकता है तो अध्यापक स्व अपने किसी अच्छे कार्य का उदाहरण प्रस्तुत करें तो बच्चों पर अधिक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा बच्चों से भी प्रेरक कहानी बीच-बीच में सुननी चाहिये अध्यापक बच्चों के सामने कोई ऐसा व्यवहार न करें जिससे कि उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़े क्योंकि बच्चे अध्यापक को अपना हीरो समझते हैं वह समझते हैं कि जो अध्यापक कर रहा है वह सही है इसलिए स्वयं अध्यापक उनके सामने एक आदर्श रूप ही प्रस्तुत करने का प्रयास करें आप देखेंगे कि ऐसा करने से आपके शिक्षण कार्य में चार चांद लग जाएंगे
8-सामाजिक कार्यों में बच्चों की भागीदारी:- स्वयं अध्यापक को विद्यालय में कुछ ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे कि बच्चों में सामाजिक भावना का विकास हो सके जैसे विद्यालय की साफ-सफाई विद्यालय में ,पेड पौधे लगाना, विद्यालय के फंक्शनओं में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना , विद्यालय में ऐसे बच्चों को चिन्हित  करें जो फीस देने में असमर्थ हैं उनकी फीस जमा कराना, बच्चों को स्पेसिमेन कॉपी फ्री देना ऐसा करने से बच्चों में आपके प्रति सम्मान बढ़ेगा तथा वे आपके द्वारा कही बात को अधिक तवज्जो देंगे तथा वह भी ऐसे कार्यों में बढ़-चढ़कर रुचि लेने का प्रयास करेंगे ऐसा देखने को मिलता है कि ऐसे अध्यापक के द्वारा बच्चे सीखने में अधिक रूचि लेते हैं जिसके कारण बच्चों के सीखने   के स्तर में काफी सुधार देखने को मिलेगा
9-बच्चों में नेतृत्व की क्षमता का विकास:-
अध्यापक कक्षा को विभिन्न टोलियो में बांट दें प्रत्येक टोली का एक नेता घोषित कर देना चाहिए तथा प्रत्येक डोली को एक कार्य दे दे और उसकी जवाबदेही नेता की होनी चाहिए इससे बच्चों में नेतृत्व क्षमता का विकास होगा उनमें आत्मविश्वास जैसे गुणों का संचार होगा और जिसके कारण बच्चे शिक्षा में भी रूचि लेंगे तथा जो अध्यापक सिखाता है उसे बड़ी जिम्मेदारी के साथ सीखने का वह प्रयास करेंगे
10:-कक्षा में घूम घूम कर पढ़ाएं :-
अध्यापक को कक्षा में बैठकर नहीं पढ़ाना चाहिए उसे कक्षा में खड़े होकर तथा घूम घूम कर पढ़ाना चाहिए इससे अध्यापक की सभी बच्चों पर नजर होती है तथा अनुशासन भी बना रहता है तथा सभी बच्चे सीखने का प्रयास भी करते हैं क्योंकि अध्यापक सभी बच्चों के टच में रहता है तथा यह भी भली भांति देखता रहता है कि कौन बच्चा मेरी बात को गंभीरता से ले रहा है और कौन गंभीरता से नहीं ले रहा है कौन बच्चा पढ़ाई में रुचि ले रहा है और कौन बच्चा पढ़ाई में रुचि नहीं ले रहा है वैसे अधिकतर जब टीचर कक्षा में घूम-घूम कर पढ़ाता है तो अधिकतर बच्चे पढ़ने में रुचि लेते हैं देखने को मिलता है कि इस प्रकार के शिक्षण कौशल से शिक्षा के स्तर में काफी सुधार देखा जा सकता है
11- गृह कार्य अवश्य दें एवं चेक करें:-
बच्चों को उचित गृह कार्य अवश्य दें तथा उसे निश्चित रूप से चेक अवश्य करें आपके इस शिक्षण कौशल से बच्चों में निश्चित रूप से शिक्षा के स्तर में सकारात्मक रूप से सुधार अवश्य देखने को मिलेगा
12- पूर्ण तैयारी के साथ कक्षा में जाएं :-
जिस विषय वस्तु को आपको कक्षा में बच्चों के सामने प्रस्तुत करना होता है उसे एक दिन पहले अवश्य पढ़ ले इससे आप में आत्मविश्वास आएगा तथा उस विषय वस्तु को बच्चों के सम्मुख स्पष्ट रूप से आप रख पाएंगे तथा बच्चे भी उस विषय वस्तु को सीखने में अधिक रूचि लेंगे ऐसा करने से बच्चे आपकी बात को बिना किसी रूकावट के सुनेंगे ऐसा जो अध्यापक करती हैं उनका शिक्षण कार्य काफी अच्छा होता है और बच्चे भी ऐसे शिक्षक को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं इससे बच्चों के सीखने के स्तर में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलता है
13- शैक्षिक भ्रमण के द्वारा शिक्षण:-
स्वामी दयानंद सरस्वती जी शैक्षिक भ्रमण के द्वारा शिक्षा पर बहुत अधिक महत्व देते थे वह कहते थे कि भ्रमण के द्वारा ग्रहण की गई शिक्षा स्थाई होती है भ्रमण के द्वारा शिक्षण में बच्चे अधिक रूचि लेते हैं तथा उनके शिक्षा के स्तर में भी काफी सुधार देखने को मिलता है इस प्रकार की शिक्षा को वह बहुत ही सरलता से सीख लेते हैं
14- कक्षा में प्रत्येक बच्चे की भागीदारी:-
कक्षा-कक्ष में चर्चा के दौरान हर बच्चे को भागीदारी देने का प्रयास करें। यह एक दिन में संभव न हो तो सप्ताह के अलग-अलग दिनों में बच्चों को अपनी बात रखने का अवसर दें। ताकि कोई भी बच्चा यह न महसूस करे कि कक्षा-कक्ष में जो पढ़ाया जा रहा है, वह उसके लिए समझना मुश्किल है। उसको लगे कि कक्षा का संचालन उसके लिए ही किया जा रहा है। इससे बच्चे खुद भी सीखने की जिम्मेदारी लेंगे और तैयारी के साथ कक्षा में आएंगे।
15- सरल ,स्पष्ट एवं मातृभाषा में शिक्षण:-
अध्यापक को कक्षा कक्ष में सरल ,स्पष्ट एवं मातृभाषा में ही शिक्षण करना चाहिए क्योंकि बच्चे जितना बेहतर तरीके से मात्र भाषा में पढ़ना सीखते हैं या कोई व्यवहार करना सीखते हैं वह अन्य किसी भाषा मैं नहीं कर सकते जिससे कि वह कमजोर से कमजोर और होशियार से होशियार बच्चे की समझ में आसानी से आ जाए
16-बैग का वजन कम:- हमें इस प्रकार से प्रयास करना चाहिए कि जिससे कि बच्चे के बैग में  वजन कम से कम हो, टीचर अपनी बुक से बच्चों को कक्षा में पढ़ाएं तथा बच्चों से केवल नोटबुक लाने के लिए बोले क्योंकि बच्चों के बैग में जब वजन ज्यादा होता है तो वह जल्दी थक जाते हैं जिसका सीधा प्रभाव बच्चे की सीखने की प्रक्रिया पर पड़ता है
17-घर पर पढ़ने की आदत का विकास:-  जितना बच्चा सेल्फ स्टडी से से सीखता है उतना किसी अन्य के द्वारा नहीं सीखता है शिक्षक या अन्य तो केवल रास्ता बताने वाला होता है उस रास्ते पर तो छात्र को ही चल कर जाना होता है अतः अध्यापक कोअधिक से अधिक बच्चों को घर पर  पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करें
18- शिक्षक अपने आप को उदाहरण के रूप में:- शिक्षक को छात्र अपना हीरो समझते हैं इसलिए शिक्षक को सदैव सकारात्मक व्यवहार करना चाहिए जिससे कि उसके व्यवहार का अनुसरण करके छात्र अधिक से अधिक सीखने का प्रयास करेंगे अध्यापक को  सामाजिक जागरूकता जैसे मुद्दों को बच्चों के बीच में प्रस्तुत करते रहना चाहिए तथा स्वय को भी एक उदाहरण के रूप में सदैव प्रस्तुत करें इससे बच्चों के सीखने की प्रक्रिया में काफी तेजी आती है अध्यापक के व्यवहार का छात्रों पर सीधा प्रभाव पड़ता हैं
यदि अध्यापक उपरोक्त शिक्षण कौशलों का अपने कक्षा शिक्षण में प्रयोग करता है तो कक्षा कक्ष का शिक्षण स्तर सकारात्मक दृष्टि से सुधरेगा तथा बच्चे भी सीखने में रुचि लेंगे तथा वह कक्षा के शिक्षण को एक बोझ न समझकर खेल के रूप में लेंगे यदि अध्यापक उपरोक्त शिक्षण कौशल ओं का प्रयोग करता है तो उसके पीरियड में बच्चों के छोड़ने की प्रवृत्ति भी धीरे-धीरे कम होने लगती है और बच्चों के शिक्षण का स्तर भी सुधरने लगता है

Comments

  1. Life Style:जानिए #खुश रहने के मूल मंत्र
    https://www.allinone89.in/2021/05/20-how-to-be-happy-in-hindi.html

    ReplyDelete
  2. I DON'T HAVE WORD TO CALL YOU THANKYOU BUT I CALL YOU THIS IS VERY USEFUL ARTICLE FOR ALL TEACHER ITS AMAGING SUPER AND FANTASTIC

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

भारत में समाजशास्त्र का उद्भव एवं विकास( Growth and Development of sociology in India)

समाजशास्त्र का क्षेत्र (scope of sociology) 11