भारत में समाजशास्त्र का उद्भव एवं विकास( Growth and Development of sociology in India)
भारत में समाजशास्त्र के उद्भव व विकास का इतिहास 4000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन रहा है| इतना अवश्य है कि वैदिक और उत्तर वैदिक काल में सामाजिक विचारधारा का मूल स्रोत धर्म था और धार्मिक आधार पर ही समाज की विभिन्न संस्थाओं व्यवस्थाओं का व्यवस्थित व क्रमबद्ध ज्ञान प्राप्त किया जाता था| भारत के प्राचीन ग्रंथों में समाज के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख विविध प्रकार से किया गया है |उदाहरण :- वैदिक साहित्य एवं बिंदु शास्त्रों जैसे उपनिषदों, महाभारत, रामायण एवं गीता आदि ग्रंथों में वर्णन एवं जाति व्यवस्था, संयुक्त परिवार प्रणाली ,आश्रम व्यवस्था विभिन्न संस्कारों ,वर्ण व्यवस्था तथा ऋण व्यवस्था जैसे अनेक महत्वपूर्ण सामूहिक सामाजिक पहलुओं का विधिवत विवरण मिलता है जो कि आज के समाजशास्त्रीय विश्लेषण के किसी भी मानदंड से कम नहीं है| ईसा से 300 वर्ष पूर्व चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र में जिन राजनीतिक ,सामाजिक व आर्थिक नीतियों का उल्लेख किया गया है उनकी तुलना में यूनानी विचार को का स्तर कहीं नीचा है|
भारत में समाजशास्त्र का एक संस्थागत विषय के रूप में विकास 1919 ईस्वी में हुआ जबकि प्रोफेसर पैट्रिक नामक अंग्रेज समाजशास्त्री की अध्यक्षता में मुंबई विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर स्तर पर समाजशास्त्र का अध्यापन कार्य प्रारंभ हुआ| भारत में समाजशास्त्र का विकास उपनिवेशवाद ,आधुनिक पूंजीवाद एवं औद्योगिकरण, नगरीकरण का परिमाण माना जाता है| अंग्रेज समाजशास्त्रियों ने 19वीं शताब्दी के भारत में यूरोपीय समाज का अतीत देखा |यद्यपि यद्यपि भारत में औद्योगीकरण का प्रभाव उतना नहीं था जितना कि पश्चिम समाजों पर तथापि पश्चिम समाज शास्त्रियों ने पूंजीवाद एवं आधुनिक समाजों को लिखे अपने लेखों को भारत में हो रहे सामाजिक परिवर्तनों को समझने के लिए प्रसांगिक माना| उनके एवं भारतीय समाजशास्त्र द्वारा आदिम समूह, ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों के अध्ययनों से भारत में समाजशास्त्र की नींव मजबूत होती गई|
सन 1947 के बाद अपने देश में समाजशास्त्र का एक स्वतंत्र विषय के रूप में प्रगति कर रहा है| आज मुंबई, आगरा ,लखनऊ ,कानपुर ,गुजरात ,कर्नाटक ,मैसूर, नागपुर, पटना ,उस्मानिया, जबलपुर, बिहार, रांची, राजस्थान ,बड़ौदा ,दिल्ली ,पंजाब ,पूना ,शिमला, गोरखपुर, मेरठ एवं अन्य प्रमुख विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थाओं में इसका अध्ययन सुचारू रूप से चल रहा है जो इसकी बढ़ती हुई लोकप्रियता का परिचायक है |हरियाणा के महर्षि दयानंद रोहतक एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र में इसका अध्ययन व्यवस्थित तौर पर चल रहा है |
समाजशास्त्र के महत्व व लोकप्रियता को देखते हुए अनेक शोध संस्थाओं की भी स्थापना की गई बढ़ते हुए समाजशास्त्री ज्ञान में इन संस्थाओं का विशेष स्थान है| भारतीय समाज शास्त्रियों ने इस विज्ञान को अपनी सेवाओं से अधिक से अधिक समृद्ध बनाने का प्रयास किया| प्रमुख भारतीय समाज शास्त्रियों के रूप में प्रोफेसर गोविंद सदाशिव ,डॉ राधाकमल मुखर्जी, श्रीमती इरावती कर्वे, प्रोफेसर एमएन श्रीनिवास ,डॉक्टर ब्रिज राज चौहान, डॉक्टर योगेश अटल, डॉक्टर योगेंद्र सिंह ,डॉक्टर राज नारायण सक्सेना, प्रोफेसर टीकेएन, डॉक्टर डीएन मदन, प्रोफेसर देसाई, प्रोफेसर श्याम चरण दुबे, प्रोफेसर राजाराम शास्त्री, प्रोफेसर अवधकिशोर, प्रोफेसर राधा कृष्ण मुखर्जी, प्रोफेसर कपाड़िया, प्रोफेसर प्रभु ,प्रोफेसर सुशील चंद, प्रोफेसर केएन शर्मा, प्रोफेसर एसके श्रीवास्तव, डॉक्टर सत्येंद्र त्रिपाठी, प्रोफेसर एसपी नगेंद्र आदि के नाम उल्लेखनीय है इन समाज शास्त्रियों का समाजशास्त्रीय योगदान मूल्यवान है तथा विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित है
Sir bhaut hi acha
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