अन्य सामाजिक शास्त्रों से समाजशास्त्र का संबंध Relation of sociology with other social sciences

समाजशास्त्र संपूर्ण मानव के सामाजिक जीवन का अध्ययन करता है और इस दृष्टि से इसका अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध होना स्वाभाविक है| मनुष्य का जीवन बहुमुखी है उसके जीवन के अनेक पक्ष होते हैं जैसे  राजनैतिक पक्ष, मनोवैज्ञानिक पक्ष, ऐतिहासिक पक्ष, आर्थिक पक्ष, धार्मिक पक्ष, सांस्कृतिक पक्ष, विधि पक्ष, सौंदर्य भाव पक्ष आदि मानव जीवन के समस्त पक्षों का अलग-अलग अध्ययन करने के लिए अलग अलग सामाजिक शास्त्र होते हैं अतः इन सभी समाज शास्त्रों की सहायता से मानव के सामाजिक जीवन को समाजशास्त्र समझता है इससे स्पष्ट होता है कि अन्य सामाजिक शास्त्रों की सहायता के बिना समाजशास्त्र का अलग अस्तित्व संभव नहीं है |
परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि समाजशास्त्र केवल अन्य सामाजिक शास्त्रों की सहायता ही लेता है और उन्हें देता कुछ भी नहीं है वास्तविकता तो यह है कि अन्य सामाजिक शास्त्र समाजशास्त्र पर बहुत सीमा तक निर्भर होते हैं  मानव की समस्त क्रियाएं, समस्त व्यवहार, समस्त घटनाएं, समस्त पक्ष सामाजिक जीवन से संबंधित होती हैं इसके अतिरिक्त विभिन्न सामाजिक शास्त्र मानव जीवन के एक विशेष पहलू का ही अध्ययन करते हैं और इसलिए वह सामाजिक जीवन का पूर्ण चित्र हमारे सामने नहीं उपस्थित कर सकते हैं उदाहरण के लिए मनोविज्ञान में मानव की मनोदशा, मानव व्यवहार का अध्ययन , अर्थशास्त्र में मानव की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन ,राजनीतिक शास्त्र में मानव की राजनीतिक क्रियाओं का अध्ययन ,इतिहास शास्त्र में मानव की ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन का ही पता लगाते हैं| परंतु सामाजिक जीवन के इन सभी पक्षों  के बीच परस्पर संबंधों का का अध्ययन समाजशास्त्र में ही किया जाता है इस दृष्टि से समाजशास्त्र अपेक्षाकृत एक अधिक व्यापक शास्त्र हैं जिससे विशिष्ट सामाजिक शास्त्र भी इसके अंतर्गत आ जाते हैं इसी कारण समाजशास्त्र को सभी सामाजिक विज्ञानों की जननी कहा जाता है क्योंकि यह सभी शास्त्र मानव की क्रियाओं घटनाओं व्यवहारों प्रतिक्रियाओं संबंधों का अध्ययन करते हैं तो इनके बीच परस्पर संबंध होना स्वभाविक है, यह सभी तथ्य समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञानों के संबंधों के निम्नलिखित विवेचन से स्पष्ट हो जाएगा
समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र (Sociology and Economics)
समाज पर आर्थिक तत्वों का प्रभाव होता है और आर्थिक प्रक्रियाओं का निर्धारण सामाजिक वातावरण से होता है अतः यह स्पष्ट है कि समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र के बीच गहरा संबंध है प्रारंभिक काल में समाजशास्त्र का अध्ययन और स्वास्थ्य के अंतर्गत ही किया जाता था बाद में समाजशास्त्र को एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान के रूप में स्वीकार किया  किया गया अर्थशास्त्र प्राणियों के भौतिक कल्याण से संबंधित है परंतु भौतिक कल्याण पूर्व मानव कल्याण का एक भाग है और इसकी प्राप्ति सामाजिक नियमों के उचित ज्ञान से ही हो सकती है समाजशास्त्र तथा अन्य सामाजिक शास्त्रों की सहायता के बिना अर्थशास्त्र आगे नहीं बढ़ सकता उदाहरण बेरोजगारी ,व्यापार चक्र, आर्थिक नियोजन ,निर्धनता ,बेकारी ,जनसंख्या आदि समस्याओं का अध्ययन समाजशास्त्र वह अर्थशास्त्र में सामान्य रूप से किया जाता है|
अर्थशास्त्र वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण का अध्ययन करता है परंतु उत्पादन एवं सेवा के इन साधनों का संबंध मनुष्य से होता है और मनुष्य समाज का क्रियाशील सदस्य हैं |समाजशास्त्र के माध्यम से सामाजिक संबंधों को समझने का प्रयास किया जाता है और अर्थशास्त्र द्वारा समाज और व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियों को समझने का प्रयास किया जाता है| अर्थशास्त्र में आर्थिक  संबंधों का अध्ययन किया जाता है तथा समाजशास्त्र में सामाजिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है परंतु आर्थिक संबंध सामाजिक संबंधों पर आश्रित होते हैं |वास्तव में आर्थिक संबंध सामाजिक संबंधों के गुच्छे की एक कड़ी मात्र है |
आर्थिक तथा सामाजिक क्रियाओं को करने वाला प्राणी मानव ही है |और मानव एक सामाजिक प्राणी है| बेईमानी, भ्रष्टाचार ,घूसखोरी, मिलावटखोरी, निर्धनता, अपराध ,बेकारी आदि सामाजिक घटनाएं हैं परंतु इनका आधार आर्थिक  क्रियाओं से ही है मजदूर किसान की दशा बहुत गिरी हुई है इसका एकमात्र कारण आर्थिक ने होकर सामाजिक भी है इस प्रकार सामाजिक क्रियाओं घटनाओं के अध्ययन के बिना आर्थिक समस्याओं की गहराई तक नहीं पहुंचा जा सकता इसी प्रकार आर्थिक घटनाओं का अध्ययन किए बिना सामाजिक समस्याओं की गहराई तक नहीं पहुंचा जा सकता सिल्वरमैन के अनुसार अर्थशास्त्र को सामान्य शब्दों में समाजशास्त्र के पैतृक विज्ञान जो सभी सामाजिक संबंधों के सामान्य नियमों का अध्ययन करता है ,की एक शाखा समझा जा सकता है मैकाइवर ने लिखा है आर्थिक घटना वस्तु सामाजिक आवश्यकता एवं गतिविधि के सभी प्रकारों द्वारा निरंतर प्रभावित होती है जो पुनः प्रत्येक प्रकार की सामाजिक आवश्यकता एवं गतिविधि को निरंतर पुनः निर्धारित, निर्मित एवं परिवर्तित करती रहती है| इन विचारों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि आर्थिक और सामाजिक कारकों को एक दूसरे से अलग करके अध्ययन नहीं किया जा सकता|
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में अंतर:-
1-समाजशास्त्र में सामाजिक संबंधों का संपूर्ण रूप से अध्ययन किया जाता है परंतु अर्थशास्त्र में केवल आर्थिक संबंधों का ही अध्ययन किया जाता है| इस स्थिति में यह कहा जा सकता है कि अर्थशास्त्र एक सीमित विज्ञान है ,जबकि समाजशास्त्र एक विस्तृत विज्ञान है|
2- समाजशास्त्र के नियम सामाजिक क्रियाओं से संबंधित हैं,  जबकि अर्थशास्त्र के नियम आर्थिक क्रियाओं से संबंधित हैं|
3-समाजशास्त्र की प्रकृति समूहवादी है ,जबकि अर्थशास्त्र की प्रकृति व्यक्तिवादी है
4- समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धतियां अर्थशास्त्र की अध्ययन पद्धतियों से भिन्न है क्योंकि अर्थशास्त्र में केवल आगमन तथा निगमन पद्धति का ही मूल रूप से प्रयोग किया जाता है |इसके विपरीत समाजशास्त्र में सामाजिक सर्वेक्षण, समाजमिति तथा निरीक्षण आदि विभिन्न अध्ययन  प्रविधियों एवं ऐतिहासिक ,तुलनात्मक ,संरचनात्मक, प्रकार्यात्मक आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है|
5- समाजशास्त्र एक सामान्य सामाजिक विज्ञान है, जबकि अर्थशास्त्र एक विशिष्ट सामाजिक विज्ञान है|
6- समाजशास्त्र का दृष्टिकोण व्यापक है ,जबकि अर्थशास्त्र का दृष्टिकोण मुख्य आर्थिक है|
7- अर्थशास्त्र समाजशास्त्र की अपेक्षा अधिक पुराना शास्त्र है| यद्यपि काम्टे जैसे दार्शनिक अर्थशास्त्र को समाजशास्त्र के अंतर्गत सम्मिलित करते हैं तथापि समाजशास्त्र अभी हाल में विकसित एक शास्त्र है, जबकि अर्थात परिपक्वता प्राप्त कर चुका है
समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में संबंध:-
समाजशास्त्र तथा राजनीतिक शास्त्र में घनिष्ठ संबंध है| समाजशास्त्र में सामाजिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है, जबकि राजनीतिक शास्त्र का संबंध राज्य की राजनीतिक संस्थाओं एवं राजनीतिक व्यवहार से होता है |राजनीतिक शास्त्र केवल मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करता है ,जबकि समाजशास्त्र मानव के राजनीतिक व्यवहार के साथ-साथ उसके संपूर्ण व्यवहारों का अध्ययन करता है |इस प्रकार समाजशास्त्र मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करने के लिए राजनीतिक शास्त्र का सहारा लेता है तथा राजनीतिक शास्त्र मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र का सहारा लेता है |इस प्रकार यह दोनों आपस में आदान-प्रदान करते रहते हैं |इस प्रकार दोनों ही मानव के क्रियाकलापों का अध्ययन करते हैं| वास्तव में राजनीतिक शास्त्र मानव को एक राजनीतिक प्राणी के रूप में देखता है जबकि समाजशास्त्र यह बताता है कि मानव राजनीतिक प्राणी कैसे बना यह तथ्य राजनीति राजनीतिक शास्त्र को समाजशास्त्र से ही पता लगता है कुछ भी हो यह दोनों विज्ञान प्रारंभ से ही एक दूसरे से संबंधित रहे हैं समाज के संगठन से राज्य के नियम को पनियम खुले मिले हैं और यही कारण है कि इन दोनों पक्षों सामाजिक व राजनीतिक अध्ययन करने वाले विज्ञानों को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है यह दोनों एक दूसरे को परस्पर प्रभावित करते हैं एक दूसरे से कुछ लेनदेन करते हैं
राजनीति शास्त्र समाजशास्त्र का एक भाग है जो मानव समाज के राजनीतिक संगठन एवं शासन के नियमों का अध्ययन करता है गिड्डिंग्स के शब्दों में जिस व्यक्ति को पहले समाजशास्त्र के मूल सिद्धांतों का ज्ञान न हो उसे राज्य के सिद्धांतों की शिक्षा देना वैसा है जैसा न्यूटन के गति सिद्धांतों को न जानने वाले व्यक्ति को खगोलशास्त्र या ऊष्मागतिकी की शिक्षा देना
समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में अंतर:-
1-समाजशास्त्र अपने विस्तृत अर्थ में समाज के समस्त स्वरूपों एवं पहलुओं का अध्ययन करता है, जबकि राजनीतिकशास्त्र में केवल राज्य और सरकार तथा राजनीतिक स्वरूपों का अध्ययन किया जाता है|
2- समाजशास्त्र संगठित तथा असंगठित दोनों प्रकार के समुदायों का अध्ययन करता है, जबकि राजनीतिक शास्त्र का संबंध केवल संगठित समुदाय और समाजों का अध्ययन करना ही है|
3- समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक होने के साथ-साथ विस्तृत भी है, जबकि राजनीतिक शास्त्र का दृष्टिकोण शासकीय और राजनीतिक है|
4- समाजशास्त्र में सामाजिक नियंत्रण के सभी साधनों का अध्ययन होता है, राजनीतिक शास्त्र में राज्य द्वारा स्वीकृत नियंत्रण के साधनों का अध्ययन होता है| 5-समाजशास्त्र यह स्पष्ट करता है कि व्यक्ति राजनीतिक प्राणी क्यों बना है, राजनीति व्यक्ति को एक राजनीतिक प्राणी के रूप में देखता है|
6- समाज का निर्माण और विकास राज्य से बहुत पहले हो चुका था इसलिए समाजशास्त्र राजनीत शास्त्र से अधिक प्राचीन है ,राजनीतिक शास्त्र राजनीति और शासकीय व्यवस्था से जुड़ा शास्त्र है|
7- समाजशास्त्र व्यक्ति के चेतन और अचेतन दोनों प्रकार के व्यवहारों से संबंधित है ,परंतु राजनीतिक शास्त्र केवल चेतन व्यवहार से संबंधित है|

समाजशास्त्र और मनोविज्ञान:- समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान दोनों ही मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं |दोनों विषयों का संबंध प्रत्यक्ष मानव के मस्तिष्क से होता है |दोनों का ही अध्ययन क्षेत्र मानव व्यवहार है |समाजशास्त्र में सामाजिक संबंधों को जानने के लिए व्यवहार का अवलोकन किया जाता है| उसका प्रमुख विषय पर्यावरण के संदर्भ में व्यक्ति के व्यवहार को समझना है ,जिसके लिए मनोविज्ञान का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है |वास्तव में ,मनुष्य की प्रकृति की समस्याओं की व्याख्या के के लिए दो विज्ञानों का सहयोग परम आवश्यक है | मैकाइवर तथा पेज इस विषय में लिखते हैं समाजशास्त्र विशेष रूप से मनोविज्ञान को सहायता देता है जिस प्रकार मनोविज्ञान समाजशास्त्र को विशेष सहायता देता है|
मानव स्वभाव एवं व्यवहार को भली प्रकार समझने के लिए सामाजिक मनोविज्ञान को समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि मनुष्य जिस समाज में रहते हैं| उसी संरचना एवं संस्कृति के बारे में आवश्यक जानकारी समाजशास्त्र ही देता है परंतु समाजशास्त्री को भी सामाजिक मनोविज्ञान से सहायता लेनी पड़ती है समाजशास्त्री यह स्वीकार करते हैं कि सामाजिक संरचना में होने वाले परिवर्तन को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक आधार बड़े महत्वपूर्ण है
समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में अंतर:-
1- समाजशास्त्र समाज का समग्र रूप में अध्ययन है जबकि सामाजिक मनोविज्ञान व्यक्तियों को समूह का सदस्य मानकर उनकी अंतर क्रिया एवं उस अंतः क्रिया का उनके ऊपर प्रभाव का अध्ययन करता है| 2-समाजशास्त्र समाज का अध्ययन सामुदायिक तत्व के दृष्टिकोण से करता है ,जबकि सामाजिक मनोविज्ञान मनोवैज्ञानिक तत्वों के दृष्टिकोण से समाज का अध्ययन करता है|
3- समाजशास्त्र का मौलिक संबंध समाज और सामाजिक प्रक्रियाओं से है मनोविज्ञान का संबंध व्यक्ति और उसकी मानसिक दशाओं ,व्यवहार ,प्रक्रियाओं से है|
4-समाजशास्त्रीय व्यक्तिगत जीवन अध्ययन पद्धति समाजमिति ,सांख्यिकी पद्धति आदि का प्रयोग करते हैं मनोविज्ञान अपना अध्ययन कार्य मनोवैज्ञानिक परीक्षण और निरीक्षण के आधार पर करते है
समाजशास्त्र और इतिहास:- समाज शास्त्र और इतिहास में इतना गहरा संबंध है कि बान  बूलो जैसे लेखकों ने समाजशास्त्र को इतिहास से पृथक मानने से इंकार कर दिया| इतिहास मनुष्य के विभिन्न समाजों के जीवन, उनमें हुए परिवर्तनों ,उनके कार्यकलापों के पीछे निहित विचारों और उनके विकास में सहायक या बाधक भौतिक अवस्थाओं का लेखा-जोखा है| समाजशास्त्र विभिन्न समाजों के ऐतिहासिक विकास के अध्ययन में रुचि रखता है| यह जीवन के विभिन्न अवस्थाओं, रहने के ढंग, रीति रिवाज, शिष्टाचार और सामाजिक संस्थाओं के रूप में उनकी अभिव्यक्ति का अध्ययन करते हैं| इस प्रकार समाजशास्त्र को अपनी अध्ययन सामग्री के लिए इतिहास पर निर्भर रहना पड़ता है | यदि वर्तमान को समझने के लिए और भविष्य के मार्गदर्शन के लिए इतिहास को उपयोगी बनाना है, तो यह परम आवश्यक है कि ऐतिहासिक तथ्यों को की समाजशास्त्री ढंग से व्याख्या की जाए| इतिहास और समाजशास्त्र दोनों एक दूसरे पर आश्रित हैं और इसी कारण जी ई हावर्ड ने कहा है कि इतिहास भूतकाल का समाजशास्त्र है और समाजशास्त्र वर्तमान इतिहास है|

समाज शास्त्र और इतिहास में अंतर
1- समाजशास्त्र का क्षेत्र विस्तृत होता है, जबकि इतिहास का क्षेत्र सीमित होता है|
2-समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है क्योंकि इसका संबंध समाज से है ,जबकि इतिहास एक विशेष विज्ञान है क्योंकि इसका संबंध केवल ऐतिहासिक घटनाओं से ही है|
3- समाजशास्त्र वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करता है, जबकि इतिहास ऐतिहासिक विधियों का प्रयोग करता है|
4- समाजशास्त्र प्राचीन घटनाओं से अधिक संबंधित नहीं है, इतिहास प्राचीन घटनाओं का अध्ययन करता है| 5-समाजशास्त्र सभ्यता और संस्कृति की उत्पत्ति एवं विकास की क्रियाओं का अध्ययन करता है ,इतिहास सभ्यता और संस्कृति का देश काल के प्रसंग में अध्ययन करता है|
6- समाजशास्त्र विश्लेषण के साथ-साथ समस्याओं को सुलझाने के भी सुझाव देता है इतिहास केवल यथा तथ्यों का वर्णन करता है सुझाव नहीं देता |
7-समाजशास्त्र पुनरावृति वाली घटनाओं से अधिक संबंधित है इतिहास  पुनरावृति वाली घटनाओं से अधिक संबंधित नहीं है|
8- समाजशास्त्र अधिक प्रमाणिक है और इसके पुनः परीक्षण संभव है इतिहास अधिक प्रमाणिक नहीं है, क्योंकि ऐतिहासिक विधि में परीक्षण और पुनरीक्षण संभव नहीं है|
9- समाजशास्त्र अधिक पुराना नहीं है ,जबकि इतिहास विषय अधिक पुराना है|

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