बच्चों के शैक्षिक स्तर में गुणात्मक वृद्धि कैसे करें?

बच्चा जब पैदा होता हैतो वह कोरी स्लेट के समान होते हैं |समाज में रहकर ही वह सब कुछ सीखते हैं |समाज में रहकर ही उसे अच्छे एवं बुरे का ज्ञान होता है| बच्चा लगभग 4 वर्ष तक सबसे अधिक अपने परिवार से ही सीखता है| उसके बाद वह पास पड़ोस के बच्चों से सीखने को मिलता है| लगभग 4 वर्ष के बाद उसके स्कूलिंग शिक्षा प्रारंभ होती है|यहीं से उसका संपर्क अपनी कक्षा के छात्रों ,विद्यालय के छात्रों ,अध्यापकों तथा अन्य लोगों के साथ होता है|लगभग टीनएज तक बच्चों को अपने अच्छे या बुरे का विशेष ज्ञान नहीं होता है| वह अपने माता-पिता तथा परिवार के लोगों की तुलना में अपने मित्र मंडली की बातों का अधिक अनुसरण करते हैं|इस स्तर पर आकर अभिभावकों को अपने बच्चों के प्रति अधिक सजग रहने की आवश्यकता होती है|क्या अभिभावकों के दिमाग में  अपने बच्चों के प्रति इस प्रकार के प्रशन कभी आते हैं? वह किसके साथ खेलता है?किसके साथ घूमता है?कक्षा में उसके कैसे मित्र हैं? वह क्या पढ़ रहा है?उसके अध्यापक उसे क्या पढ़ा रहे हैं? कैसा पढ़ा रहे हैं?क्या वह होमवर्क करता है? क्या वह किसी अन्य बच्चे की कॉपी लेकर उसकी कॉपी तो नहीं करता है ?वह पढ़ने में रुचि ले रहा है और यदि नहीं ले रहा है तो क्यों नहीं ले रहा है?हमारा बच्चा घर पर कितने समय पड़ रहा है?बच्चों के विद्यालयों के पास क्या धूम्रपान की दुकानें भी हैं?क्या अध्यापक बच्चों का होमवर्क रोजाना चेक करते हैं?क्या अध्यापक बच्चों को रोजाना होमवर्क देते हैं?क्या जो बच्चों को रोजाना होमवर्क मिलता है वह उचित दीया जाता है?क्या हमारा बच्चा क्लास बंक तो नहीं करता है?यदि बंक कर रहा है तो उसका कारण क्या है?क्या हमारा बच्चा  कक्षा में अपने अध्यापक से अपनी समस्याओं को पूछता है?यदि पूछता है तो क्या अध्यापक उसका सही से जवाब देता भी है?क्या हमारा बच्चा समय से विद्यालय पहुंचता है?क्या हमारा बच्चा सुबह उठकर पड़ता है?यदि पढ़ता भी है तो कितने समय पड़ता है?उसके अध्यापक कैसे हैं?वर्तमान में स्थिति ऐसी है कि परिवार में दोनों हेंडो के कमाने के बावजूद भी परिवार का सही से लालन-पालन नहीं हो पा रहा है| महंगी से महंगी विद्यालयों में पढ़ाने के बावजूद भी बच्चों के शैक्षिक स्तर में कोई विशेष सुधार नहीं हो पा रहा है इसका क्या कारण है?प्रत्येक विषय का ट्यूशन पढ़ाने के बावजूद भी बच्चे के शैक्षिक स्तर में गुणात्मक वृद्धि विशेष नहीं हो पा रही है इसका क्या कारण है?इस प्रकार के प्रश्नों के बारे में पहले तो बहुत कम अभिभावक सोच पाते हैं जो सोचते भी हैं तो उनका हल नहीं ढूंढ पाते हैं|अधिकतर अभिभावकों को आपने यह कह कहते सुना होगा कि हमने अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे विद्यालय में पढ़ा कर देख लिया लेकिन उनके शैक्षिक स्तर में कोई विशेष सुधार नहीं हो पाया| यदि बच्चों के शैक्षिक स्तर में गुणात्मक वृद्धि करनी है तो अभिभावकों को कुछ छोटी-छोटी बातों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है जो निम्न प्रकार हैं:-
1. मातृभाषा में शिक्षा:- जब आप अपने बच्चे का प्रवेश किसी विद्यालय में कराने जा रहे हो तो सबसे पहले आपको यह देखना है कि जिस विद्यालय में बच्चों का प्रवेश करा रहे हो|क्या विद्यालय में मातृभाषा में शिक्षा दी जाती है?जिस क्षेत्र में विद्यालय स्थित है क्या उस विद्यालय के शिक्षकों को भी उस क्षेत्र की मातृभाषा का ज्ञान है?जिस भाषा में बच्चों को हम शिक्षा दिला रहे हैं क्या वह परिवार के सभी सदस्यों को आती है? इसका मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि बच्चे जितना अच्छे से और रूचि पूर्ण ढंग से मातृभाषा में सीखते हैं उतना अन्य भाषा में नहीं सीख ते हैं | आप किसी समस्या को बच्चों के सामने एक बार मातृभाषा में रखो तथा दूसरी बार किसी अन्य भाषा में रखो आप  स्वयं ही देखोगे की बच्चे जितना आत्मविश्वास एवं रूचि मातृभाषा में समस्या को हल करने में दिखा रहे हैं उतना अन्य भाषा में नहीं दिखा पाते हैं जितनी तेजी एवं अच्छे परिणाम वह मातृभाषा में लाते हैं उतना वह अन्य भाषा में नहीं ला पाते हैं अतःअभिभावकों को बच्चों के विद्यालय में प्रवेश के समय विद्यालय में शिक्षक स्टॉप से मातृभाषा में चर्चा करके देख लेना चाहिए कि जिस विद्यालय में हम अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं क्या उन शिक्षकों को भी हमारी भाषा आती है? यदि विद्यालय के शिक्षकों को आपकी मातृभाषा आती है तो शिक्षकों के द्वारा कक्षा कक्ष में सिखाए गए ज्ञान को आपके बच्चे अवश्य ग्रहण कर पाएंगे| इसका फायदा यह भी होगा कि यदि बच्चे की समझ में विद्यालय में कोई टॉपिक नहीं आ रहा है तो आप भी टॉपिक को समझ कर बच्चे को समझाने का प्रयास करोगे| आप देख भी सकते हो कि आपका बच्चा जो  पढ़ रहा है क्या वह सही पढ़ रहा है ?बच्चे आपको बेवकूफ भी नहीं बना पाएंगे क्योंकि उनको इस उम्र में अपने अच्छे और बुरे का तो ज्ञान होता नहीं है|
2. अभिभावक शिक्षक मीटिंग (PTM ) के प्रति जागरूकता:-  सरकारी हो या निजी विद्यालय सभी में अभिभावक शिक्षक मीटिंग का आयोजन प्रत्येक महीने होता है| निजी विद्यालयों में तो फिर भी लगभग 50% अभिभावक PTM में पहुंचते हैं| 50% में से भी लगभग 80% लोग इसमें विशेष रूचि नहीं रखते हैं |वह केवल विद्यालय में फॉर्मेलिटी के लिए जाते हैं यह भी तब जाते हैं जब विद्यालय की तरफ से उन पर काफी प्रेशर होता है| उनके शिक्षक से सामान्य से कुछ प्रसन्न होते हैं जैसे हमारा बच्चा पढ़ाई में कैसा चल रहा है? आपको परेशान तो नहीं करता है हमारे बच्चे की कोई शिकायत तो नहीं है| क्या हमारा बच्चा फेल है या फिर पास है? बचे 20% में से लगभग 15%  अभिभावक कुछ डीप में  जाकर शिक्षकों से अपने बच्चों के बारे में जानकारी जुटा आते हैं|जैसे क्या हमारा बच्चा होमवर्क रूटीन में दिखाता है?क्या हमारा बच्चा प्रत्येक दिन विद्यालय में आता है?क्या हमारा बच्चा क्लास बंक तो नहीं करता है? हम अपने बच्चे की और बेहतरी के लिए क्या कर सकते हैं?बच्चे की महीने की कितनी अटेंडेंस है ?हमारे बच्चे ने सबसे अधिक अंक किस विषय में प्राप्त किए हैं?यह विषय  कौन सा अध्यापक हमारे बच्चे को पढ़ाता है?हमारे बच्चे ने सबसे कम अंक किस विषय में प्राप्त किए हैं?जिस विषय में सबसे कम अंक प्राप्त किए हैं उस विषय का अध्यापक कौन है? बचे 5%अभिभावक ऐसे होते हैं कि वह प्रत्येक विषय के अध्यापक से मिलते हैं |बच्चों की प्रत्येक विषय की काफी स्वयं चेक करते हैं विद्यालय के प्रधानाचार्य जी से मिलकर जाते हैं | ऐसे अभिभावकों के बच्चों का शैक्षिक स्तर काफी अच्छा होता है |आप गौर से देखोगे तो आप पाओगे कि ऐसे अभिभावकों के बच्चे ही विद्यालय में, जिले में ,प्रदेश में पोजीशन बना पाते हैं| सरकारी विद्यालयों में अभिभावक शिक्षक मीटिंग में पहले तो अभिभावक बहुत कम मात्रा में विद्यालय पहुंच पाते हैं| यदि कुछ अभिभावक विद्यालय पहुंचते भी हैं तो उनका बच्चों की पढ़ाई लिखाई से कोई विशेष सरोकार नहीं होता है अधिकतर अभिभावकों को आप देख सकते हो कि वह बच्चों के वजीफा के पैसों के बारे में टीचर से बात करने मैं अधिक रुचि दिखाते हैं| अभिभावकों को शिक्षकों से अपने बच्चों के विषय में निम्न समस्याओं पर परिचर्चा करनी चाहिए जैसे क्या हमारा बच्चा आपकी बात मानता है ?क्या हमारा बच्चा कक्षा में उपस्थित रहता है? क्या हमारा बच्चा बीच में विद्यालय से बंक तो नहीं मारता है ?क्या हमारा बच्चा आपका होमवर्क करके लाता है ?क्या हमारे बच्चे का आपके साथ व्यवहार अच्छा है? क्या हमारा बच्चा विद्यालय में गलत बच्चों के साथ तो नहीं उठता बैठता है ?क्या हमारा बच्चा कक्षा में आपसे समस्या के बारे में चर्चा करता है? इसी प्रकार शिक्षक भी अभिभावक से कुछ प्रसन्न करता है जैसे क्या आपका बच्चा घर पर  पढ़ता है ?पढ़ता है तो कितने घंटे पढ़ता है ?अभिभावक तथा शिक्षकों के बीच में जब बच्चों को लेकर इस प्रकार की वार्तालाप होती रहती है तो निश्चित रूप से बच्चों के शैक्षिक स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है| अभिभावक शिक्षक मीटिंग में अधिक से अधिक अभिभावकों को रुचि लेनी चाहिए |वहां पर जाकर अपने बच्चों के शैक्षिक स्तर के विषय में शिक्षकों से बढ़-चढ़कर वार्तालाप करना चाहिए |निश्चित रूप में  आपको बच्चों के शैक्षिक स्तर में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा|
3. पुनः शिक्षक को प्राचीनकालीन अधिकार:- अक्सर हमें लगभग 40 से 70 वर्ष के लोगों से सुनने को मिलता है कि यदि हमारे शिक्षक हमारे सामने आ जाते थे तो हम उनसे दुबक जाते थे |यदि हम होमवर्क पूर्ण कर के नहीं ले जाते थे तो वह हमें बहुत पीटते थे |हम अपने अध्यापक से बहुत डरते थे जिसका कारण यह था कि हम समय से होमवर्क करके ले जाते थे विद्यालय में भी अनुशासन में रहते थे कक्षा को तो बंक करने की किसी की हिम्मत ही नहीं होती थी इसका फायदा घर के भी खूब उठाते थे शिक्षक का डर दिखाकर हमसे घर का काम भी खूब कराते थे अभिभावकों की तरफ से शिक्षकों को उनके बच्चों को डांटने पीटने का पूर्ण अधिकार होता था| यदि अभिभावक को पता चल जाता था कि हमारे बच्चे ने शिक्षक के साथ कोई गलत व्यवहार कर दिया है तो अभिभावक घर से विद्यालय तक बच्चे को पीटते हुए लाते थे |क्योंकि अक्सर बच्चों को इस उम्र में अपने भले बुरे का पता नहीं होता है इसलिए चाहे बच्चे  डर से ही सही लेकिन पठन-पाठन में रूचि लेते थे |आप देख भी सकते हो कि लगभग 40 से 70 वर्ष के लोगों का शैक्षिक एवं नैतिक स्तर वर्तमान बच्चों के शैक्षिक एवं नैतिक स्तर से काफी सकारात्मक होता  हैं |इसका कारण उस समय शिक्षक के हाथ में छड़ी तथा बच्चों को डांटने डपटने का अभिभावक के समान अधिकार होता था जिसका सीधा प्रभाव बच्चे के शैक्षिक स्तर पर पड़ता था| जबसे शिक्षक के हाथ से छड़ी को  छीना गया है तब से बच्चों के शैक्षिक तथा नैतिक स्तर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है आए दिनों आप बलात्कार ,भ्रष्टाचार ,घूसखोरी, जमाखोरी, मिलावट खोरी ,कामचोरी,  शिक्षक के साथ अभद्र व्यवहार, विद्यालयों में देश विरोधी घटनाएं देखने को मिलती हैं कहीं ना कहीं इसका कारण शिक्षक के अधिकार सीमित कर देना हैं|
अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है,,,,,,,,,
लौटा दो शिक्षक के हाथ में छड़ी,,,,,,,
ईमानदार एवं देशभक्त नागरिक बनेंगे,,,,,,,,,,,
बलात्कारी एवं देशद्रोही नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वर्तमान में विद्यालयों में शिक्षक की स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है |शिक्षक का घर से निकलते समय उद्देश्य विद्यालय में जाकर शिक्षण करने की तुलना मैं नौकरी को बचाना अधिक होता है| विद्यालयों में शिक्षक बच्चों को डांट डपट नहीं सकते हैं,पीट नहीं सकते हैं, नाम नहीं काट सकते,कम उपस्थिति होने पर परीक्षा में बैठने से रोक नहीं सकते,कक्षा 1 से 8 तक किसी को फेल नहीं कर सकते,विद्यालय में लेट आने पर विद्यालय से बाहर नहीं कर सकते,अध्यापक के साथ गलत व्यवहार करने पर नाम नहीं काट सकते,होमवर्क समय पर चेक न कराने पर डांट डपट नहीं सकते ऐसी स्थिति में आप शिक्षक से क्या अपेक्षा कर सकते हो ?बच्चों से क्या अपेक्षा कर सकते हो? ऐसी स्थिति में शिक्षक कागजों में तो शैक्षिक स्तर को अच्छा दिखा सकता है| लेकिन जब आप जमीनी स्तर पर जाओगे तो सकारात्मक रूप से  गुणात्मक शिक्षा की हवा निकली मिलेगी |बच्चे ने दसवीं कर ली है और उसको जोड़  तक नहीं आते हैं, हिंदी का सही से सेंटेंस लिखना नहीं आता है, वह कोई एप्लीकेशन सही से नहीं लिख सकता है |यहां तक है कि वह हिंदी और अंग्रेजी में अपना नाम तक नहीं लिख  पा रहा है|यही कारण है कि देश में शिक्षित बेरोजगार लोगों की भीड़ लगी हुई हैं|यदि वास्तव में गुणात्मक शिक्षा की बात करते हो तो शिक्षक को अभिभावक के समान अधिकार देने पड़ेंगे तभी सही मायने में नैतिक ,चारित्रिक ,सामाजिक ,सांस्कृतिक, शैक्षिक स्तर में सकारात्मक परिवर्तन लाए जा सकते हैं|
4. स्वयं अध्ययन के लिए प्रेरित करना:- यदि आपकी गाड़ी सही है तो वह आपको जितनी दूर जाना हो उतनी दूर आसानी से ले जा सकती है लेकिन यदि आपकी गाड़ी खराब हो जाती है तो आप उसे धक्का मार कर अधिक से अधिक 100 मीटर, 200 मीटर, 300 मीटर, 400 मीटर ले जा सकते हैं| इसी प्रकार यदि बच्चे का मन पढ़ाई में लग रहा है तो वह बड़ी से बड़ी समस्या को भी आसानी से सुलझा सकता हैहै| यदि बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है |आप उसे पढ़ने के लिए बोल रहे हो तो वह किताब को लेकर तो बैठ सकता है लेकिन वह पढ़ने का नाटक ही करता है वह उस समस्या को हल नहीं करता है इसलिए बच्चों को कुछ नया सीखने के लिए उन्हें अधिक से अधिक प्रेरित किया जाए चाहे उन्हें कोई पुरस्कार देने की बात की जाए या कोई प्रेरक कहानी बता कर उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए| जब बच्चा स्व पढ़ने के लिए तैयार हो जाता है उसके अंदर से सीखने की ललक आती है तो वह बड़ी से बड़ी बाधा को भी बड़ी सरलता के साथ पार कर लेता है| अभिभावक ,अध्यापक बच्चों को इस प्रकार तैयार करें जिससे कि वह पढ़ने में अधिक से अधिक रुचि दिखाएं तथा उनसे पढ़ने के लिए किसी को कहने की जरूरत ना पड़े वह स्वयं ही समय का सदुपयोग करें तो निश्चित रूप से बच्चों के शैक्षिक स्तर में गुणात्मक वृद्धि देखने को मिलेगी क्योंकि आप डांट फटकार से उन्हें कुछ समय के लिए पढ़ने के लिए तैयार कर सकते हैं लेकिन यदि उनमें लंबे समय के लिए सीखने के लिए तैयार करना है तो सीखने के प्रति उनके अंदर जुनून पैदा करना होगा |वह होगा प्रेरणा से ,पुरस्कार का लालच देकर, प्रेम से ,प्रेरक कहानियां सुना कर , स्वयं का उदाहरण प्रस्तुत करके ,सीखने का वातावरण  देकर, बच्चों के अंदर सीखने की ललक, जुनून, हौसला पैदा करके बच्चों के शैक्षिक स्तर को बढ़ाया जा सकता है|
5.घर मैं शैक्षिक माहौल:- बच्चों पर यदि सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है तो वह घर के माहौल का पड़ता है| अभिभावक स्वयं भी घर पर कुछ ना कुछ पढ़ने का प्रयास करें क्योंकि बच्चे देखकर अधिक सीखते हैं| रोजाना बच्चों का होमवर्क चेक करें |क्या अध्यापक ने बच्चों को होमवर्क दिया है?क्या बच्चे अपना होमवर्क अध्यापक पर चेक कर आते हैं?क्या अध्यापक बच्चों को जो होमवर्क देते हैं उसे चेक करते समय उसमें कमियों को ढूंढ कर सही करने का प्रयास भी करते हैं? क्या आपके बच्चे विषय वस्तु के कांसेप्ट को समझते भी हैं या उसे ऐसे ही रटते हैं ?क्या बच्चों को विषय की बेसिक जानकारी है? क्या बच्चे को होमवर्क करने में कोई परेशानी तो नहीं आ रही है ?क्या बच्चों को जो होमवर्क मिल रहा है वह उपयोगी भी है? अभिभावकों को घर पर उपरोक्त सभी प्रश्नों का ध्यान रखते हुए अपने बच्चों का शिक्षण कार्य कराना चाहिए बच्चों को बात बात पर डांट फटकार ने लगाएं उन्हें प्यार और एक मित्र की तरह समझाने का प्रयास करें प्रत्येक दिन उनके विषय से संबंधित उन्हें कोई ना कोई टास्क देकर अपने काम पर तभी जाएं तथा शाम को आने के बाद उस कार्य के विषय में बच्चों से चर्चा करें| यदि वह उस कार्य को पूर्ण नहीं करते हैं तो उसे पूर्ण करने का कारण पूछे तथा उस समस्या को हल करने का प्रयास करें| इससे बच्चों में शिक्षा के प्रति सकारात्मक नजरिए का विकास होता है| हो सकता है तो आपस में बच्चों के सामने कभी झगड़ा नहीं करें इससे बच्चों के शैक्षिक वातावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है| बच्चों से विषयों की छोटी-छोटी बातों पर चर्चा करें यदि उनकी समझ में नहीं आ रहा है तो उन्हें समझाने का प्रयास करें यदि आप नहीं समझा सकते हैं तो संबंधित विषय अध्यापक से मिलकर उसे बच्चों को समझाने के लिए बोलें|
6. बच्चों को इमला लिखवाए:- हिंदी तथा अंग्रेजी के शब्दों को लिखने में अधिकतर बच्चे गलतियां करते हैं इन गलतियों को सुधारने के लिए दिन में प्रत्येक दिन 10 से 15 मिनट बच्चों को हिंदी तथा अंग्रेजी के कठिन शब्दों पर शब्दों को बोलकर लिखवाए| पहले विद्यालयों में कक्षा 1 से लेकर आठवीं तक सभी अध्यापक बच्चों से  कठिन शब्दों को बोल कर लिखवा ते थे |वर्तमान समय में यह विधि समझो विलुप्त सी हो गई है| जिसके कारण बच्चे कठिन शब्दों को लिखने में त्रुटि करते हैं| इसलिए अभिभावकों तथा अध्यापकों को इमला लिखवाने की इस विधि को पुनः प्रयोग में लाना चाहिये| इससे बच्चों में आत्मविश्वास का विकास होता है| शिक्षा के प्रति उनमें रुचि उत्पन्न होती है| बच्चे स्वयं भी कठिन शब्दों को बार-बार लिखकर उन्हें स्व चेक करें| जिन शब्दों को वह लिखने में गलती करते हैं उनका अधिक अभ्यास करें| इससे बच्चों के शैक्षिक स्तर में सकारात्मक रूप से सुधार होता है|
7. शिक्षकों पर परीक्षा परिणाम का दबाव :- शिक्षा विभाग ,प्रशासन तथा सरकार का जब शिक्षकों पर परीक्षा परिणाम अच्छे देने का दबाव होता है | सरकारें वोट बटोरने के उद्देश्य से शिक्षा विभाग पर उच्च स्तर के परीक्षा परिणाम देने के लिए बराबर दबाव बनाए रखते हैं |आपने विभिन्न प्रदेशों की सरकारों के द्वारा बड़े-बड़े होर्डिंग के ऊपर यह लिखा देखा होगा कि हमारे प्रदेश का 10वीं या 12वीं का रिजल्टअबकी बार 90 प्रतिशत से अधिक आया है जो संपूर्ण देश में सबसे उच्च स्तर का है | आप देख सकते हो कि सरकारों को भी गुणात्मक शिक्षा से कोई लेना देना नहीं है| आप देख सकते हैं कि हिंदी जैसे विषय में भी इंटरनल नंबर देने की व्यवस्था कर दी है |आप समझ सकते हो कि बच्चों को जैसे भी हो अधिक से अधिक पास कर दिया जाये| वर्षभर शिक्षकों से शिक्षण का कार्य कम अन्य कार्य अधिक लिए जाते हैं |शिक्षकों को यदि उनका रिजल्ट कम आता है तो उन्हें जवाब देना होता है |अब आप समझ सकते हो कि शिक्षक अपने आप को बचाने के लिए फिर क्या करेगा?ऐसी स्थिति में आप शिक्षक से क्या गुणात्मक शिक्षा की उम्मीद कर सकते हैं ?  शिक्षक भी अच्छे परिणाम देने के चक्कर में गुणात्मक एवं रचनात्मक शिक्षा से भटक कर आंकड़े आत्मक परिणाम देने के चक्कर में लग जाता है|उस समय तो बच्चे एवं उनके अभिभावक पास होने पर काफी खुश होते हैं लेकिन उसका परिणाम आगे चलकर बच्चों को बेरोजगार फौज के रूप में भुगतना होता है| शिक्षा का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए| शिक्षक पर परीक्षा परिणाम का कोई विशेष दबाव नहीं होना चाहिए| शिक्षक से केवल शिक्षण कार्य ही लिया जाए अन्य कार्य ने लिए जाएं तभी शिक्षक सही मायने में गुणात्मक शिक्षा पर जोर दे पाएगा|
8.अध्यापक :-जहां बच्चे विद्यालयी शिक्षा का केंद्र होते हैं, बच्चों में ज्ञानार्जन सुनिश्चित करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका एक अध्यापक की होती है। सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत के साथ ही आरम्भिक कक्षाओं में अध्यापकों के 19.48 लाख पदों का सृजन किया गया हैं; इन पदों के लिये अध्यापकों की नियुक्ति से छात्र-शिक्षक अनुपात में 42:1 से 24:1 का सुधार हुआ है। यद्पि अब भी ऐसे विद्यालय हैं जिनमें अध्यापक केवल एक हो या उनकी संख्या अपर्याप्त हो। इसके लिये राज्य सरकारों को अध्यापकों के एक समान वितरण के लिये नियोजन करने की आवश्यकता है एवं सेवानिवृत्त होने वाले अध्यापकों के स्थान पर दक्ष अध्यापकों की नियुक्ति के लिये एक वार्षिक कार्यक्रम रखा जाना चाहिये।वर्तमान में सरकारी विद्यालयों में नियमित अध्यापकों में से 85% व्यावसायिक रूप से योग्यता संपन्न हैं। 20 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में सभी अध्यापकों के पास अपेक्षित योग्यता है। सरकार आगामी 2-3 वर्षो तक शेष 16 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के सभी अध्यापकों का पूर्णतया दक्ष होना सुनिश्चित करने के लिये तमाम कदम उठा रही है।मंत्रालय द्वारा वर्ष 2013 में करवाए गए एक अध्ययन के परिणामों के अनुसार, अध्यापकों की औसत उपस्थिति लगभग 83% थी। इसको बढ़ोतरी कर 100% तक लाने की आवश्यकता है।सर्व शिक्षा अभियान एवं राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान योजनाओं, दोनों में अध्यापकों के ज़रूरत आधारित व्यावसायिक विकास के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इन प्रयासों को पूरा करने के लिये ऑनलाइन कार्यक्रमों की योजना भी है।ज़रूरत है कि विद्यालयी तंत्र प्रतिभाशाली युवाओं को अध्यापन के क्षेत्र में लाए, राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद ने चार वर्षीय समेकित बीए-बीएड एवं बीएससी-बीएड कार्यक्रमों की शुरुआत की है एवं श्रेष्ठ विद्यालयी तंत्र के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में ईमानदारी से रूचि रखने वालों का ध्यान आकर्षित करने के लिये इन कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है।


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