बहुजनों का शोषण कब तक??
"भूखे,प्यासे,बीमार,कमजोर रोडो पर चले जा रहे हैं
आंखों में सपने,उम्मीद की किरण की घर पहुंच जाएंगे
वह सपने,उम्मीदें रेल ट्रैक एवं रोड़ों पर कुचले जा रहे हैं कसूर शायद यही है कि आप बहुजन हो"
गरीब,मजदूर,मजबूर,असहाय,लाचारी का दूसरा नाम ही एससी,एसटी,और पिछड़ा वर्ग है भारत में इन्हीं को बहुजन कहते हैं सरकारी आंकड़ों को उठाकर देखोगे तो कालांतर से ही इन बहुजनों का राजा रजवाड़ों,सामंतो,काश्तकारों,जमीदारों,अंग्रेजों,देश विभाजन,या फिर चाहे कोरोना जैसे भयंकर बीमारियों के समय में सबसे अधिक यदि कोई शोषित हुआ है तो वह बहुजन ही हुआ है भारत में शोषण का मूल कारण फैला जाति प्रथा का मकड़जाल ही है भारत में लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या बहुजनों की है, दुर्भाग्य देखिए एससी,एसटी और पिछड़ों का देश के 20 प्रतिशत संसाधनों पर भी इनका अधिकार नहीं है सविधान के होते हुए इनके साथ राजनीति,प्रशासनिक, शैक्षिक, सामाजिक क्षेत्रों में शोषण होता आया है आप समझ सकते हो यदि संविधान देश में नहीं होता तो बहुतजनों की देश में स्थिति क्या होती? यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है सरकारी संस्थाओं से लेकर प्राइवेट संस्थाओं तक आरक्षण के होते हुए जनसंख्या के आधार पर उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है संविधान एवं आरटीआई निर्माताओं का शुक्रगुजार हूं कि यह कानून बहुजनों के लिए ऊंट के मुंह में जीरे की कहावत के समान अभी काम में आ रहा है,एसी,एसटी व अन्य पिछडो को अभी बहुत अधिक सतर्क एवं जागरूक होने की आवश्यकता है संविधान एवं आर टी आई को एक हथियार के रूप में प्रयोग कर अपनी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है तब तक कानूनों का प्रयोग करते हुए लड़ाई को सुचारू रूप से जारी रखना होगा ऐसा नहीं है कि उस खास वर्ग में कुछ लोग ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने बहुजनों के हक में अनेकों लड़ाइयां भी लड़ी हैं और अभी भी कुछ लोगों की लड़ाई जारी है देश में बहुजनों के लिए अनेकों कानून बनने के बावजूद भी छुआछूत,हेय दृष्टि से देखना,नीच मानना,मंदिरों में प्रवेश,चमार जैसे जातिसूचक शब्द,औरतों के साथ पशुओं जैसा व्यवहार,उचित मजदूरी ने देना,कार्यस्थल पर उचित सम्मान ना मिलना, चोर लुटेरे,अशिक्षित,गवार आदि अनेकों कोरोना एवं कैंसर से भी अधिक भयंकर बीमारियों से रोजाना बहूजनों को दो चार होना पड़ रहा है,1917 मैं चंपारण के भूखे,बीमार,कमजोर किसान अंग्रेजों के द्वारा शोषण की व्यथा गांधीजी को सुनाते हैं, गांधीजी ने तभी से साधारण जीवन जीना शुरू कर दिया था और भूखे,बीमार,कमजोर गरीबों की आवाज बन गए थे, लगभग सौ साल बीत गए बहुजनों की स्थिति में कोई विशेष सुधार होता दीख नहीं रहा है तब भी यह शोषित,भूखे प्यासे,बीमार,कमजोर स्थिति में रोडो पर चलने को मजबूर थे और आज भी लाचारी बेबसी इनके चेहरे पर देखने को मिल रही है ऐसा क्यों? क्या देश ने यही विकास किया है? सरकारें किसी भी पार्टियों की आय यह स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक देश में जात पात की बेड़ियां आपके पैरों में जकड़ी हुई हैं यह बेड़ियां ही आपको कमजोर, बीमार और रोड पर चलने को मजबूर करती हैं एक बार इन बेड़ियों को अपने पैरों से खोल कर देखो फिर कितना राहत और सकून मिलता है
" जाति बंधन को तोड़ो"
"राष्ट्रीय एकता के बंधन को जोड़ो"
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