दहेज प्रथा पर कविता

मुंह पर एक रुपैया ,,,,,,,
शिक्षित एवं सुशील कन्या का दिखावा,,,,,,,,
दिल में बड़ी-बड़ी गाड़ियां,,,,,,
रुपयों पैसों और गोल्ड की हसरत,,,,,,,,,
बचना ऐसे दो मुंह वाले दोगले,,,,,
दहेज के राक्षसों से,,,,,,,
बिटिया को शिक्षित जागरूक,,,,
आत्मनिर्भरता  बनाकर ,,,,,,,
आओ मिलकर हम भी मारे,,,,,
तुम भी मारो,,,,,,,,,,,
दहेज के राक्षसों के मुंह पर,,,,,,
तमाचा सादगी पूर्ण शादी का,,,,,
लूट पिटना ना लेंगे जब तक,,,,,
लौटेंगे नहीं बुजुर्गों के पद चिन्हों पर,,,
अधिनियम भी नहीं कर पाए,,,,,
कोरोना उसे कर रहा है,,,,,,,,
झूठी शान के लिए बेच दी,,,,,,
जिन्होंने बुजुर्गों की विरासत,,,,,,
ऐसे निकम्मे लोगों की ,,,,,,,,,,
करते हैं वहां वही,,,,,,,,,,
शर्म से झुक जाते है शीश,,,,,,,,,
ससुराल से खबर मिलती है,,,,,,,
दहेज के लोभ में,,,,,,,,,
बेटियों के मरने की,,,,,,,,,,,,,,
कोरोना ने मौका दिया है,,,,,,,,,,
समय रहते सुधर जाओ,,,,,
बुजुर्गों की विरासत को बेचने वालों,,,,,,,,

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