शिक्षा पर कविता
शिक्षा सुखद परिवर्तन बुलावे
संस्कारों की खान कहलावे
जो रघुवीरा यह पावे
जग में नाम कमावे
खूबियां इसमें ऐसी
खामियों को जड़ से मिटाएं
ऊंच-नीच के अंतर को कर दे छूमंतर
वह छू लेता है नए मुकाम को
नामुमकिन भी मुमकिन हो जाए
शिक्षा से गलियारों में
गलतियों से सीखने के लिए
हौसलों के लगाती पंख
शंखनाद विकास का होता
विवश कर देती दुश्मन को घुटने टेकने पर
दम भर्ती है सामाजिक बुराइयों से लड़ने को
निडर बनाती हर नर नार को
शिक्षा में है ऐसा गुण
गुणवत्ता से कार्य कराती
सहनशीलता का गहना पहनाकर
नेतृत्व करने की क्षमता लाकर
नारी को देकर सम्मान
जग में कराती उजियारा
विश्व बंधुत्व का पाठ पढ़ा कर
मानवता एवं भाईचारे से रहना सिखाती
शिक्षा में है वह चुंबक
अपनों को लाती आसपास
जिस घर में आ जाती है
खुशियों से भर देती है
आओ मिलकर मैं भी जलाऊ
आप भी जलाओ घर में
शिक्षा का दीप
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