अक्षर ज्ञान पाठशाला गाजियाबाद

मैं किसी कार्य से बाहर जा रही थी, तभी मेरी नजर कुछ झुग्गी-झोपड़ियों की ओर पड़ी। वहां छोटे-छोटे बच्चे इधर-उधर घूम रहे थे। उनके मैले-कुचैले और फटे पुराने कपड़े, नंगे पैर, और कुछ के हाथों में कटोरे देख मन भीतर तक हिल गया। वे शायद भीख मांगने जा रहे थे। मेरा कदम वहीं रुक गया, और मन ने कहा—इन बच्चों को किताबों से जोड़ो, इन्हें अक्षरों की उड़ान दो।
राजनगर एक्सटेंशन निवासी अध्यक्ष सुनहरी दिशा चैरिटेबल ट्रस्ट ज्योति तोमर बताती है कि मेरे मन में उन बच्चों को शिक्षित करने का विचार आया  मैं अपने सहयोगी उम्मीद संस्था के संस्थापक डॉ. देवेंद्र कुमार नागर से संपर्क किया, जो पहले से ही जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा के लिए समर्पित हैं। हमने मिलकर उन बच्चों के अभिभावकों से संपर्क किया और और बच्चों को शिक्षा देने के विचार से उन्हें अवगत कराया वह बहुत ही खुश हुए वहीं पर अक्षर ज्ञान पाठशाला की नींव रख दी।
ज्योति तोमर बताती हैं कि अपनी पॉकेट मनी से तथा सहयोगी डॉक्टर देवेंद्र कुमार नागर अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा से बच्चों के लिए कॉपियाँ, किताबें, पेन-पेंसिल खरीदीं। धीरे-धीरे बच्चे पढ़ाई में रुचि लेने लगे। भावना, प्रिया, कुणाल जैसे बच्चे बेहद प्यारे हैं। जो भी काम उन्हें दिया जाता है, वे पूरे मन से करते हैं। उनके अभिभावक भी प्रसन्न हैं और उन्होंने एक झोपड़ी भी पढ़ाई के लिए दे दी।
अब लगभग 60 बच्चे रोजाना अक्षर ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। हर सप्ताह ओरल व लिखित टेस्ट से बच्चों की प्रगति जानी जाती है। साथ ही, सप्ताह में एक दिन खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिए बच्चों का मनोरंजन किया जाता है।
पढ़ाने के लिए दो शिक्षिकाएं भावना और दिव्या नियुक्त की गई हैं। एक की सैलरी ज्योति अपनी पॉकेट मनी से देती हैं, जबकि दूसरी की सैलरी डॉ देवेंद्र कुमार नागर वहन करते हैं। बच्चों के लिए सर्दियों और गर्मियों की अलग-अलग ड्रेस भी उपलब्ध कराई गई है।
बच्चों के अभिभावकों की आंखों में जो संतोष और आभार झलकता है, वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। एक अभिभावक रामफल सिंह भावुक होकर कहते हैं:
"बहुतों ने हमारे बच्चों को देखा, पर आपने उन्हें समझा। आप ही हमारे बच्चों के लिए भगवान बनकर आए।"
यह प्रयास केवल अक्षर ज्ञान तक सीमित नहीं है, यह उन बच्चों को स्वाभिमान, भविष्य और सपने दे रहा है। और यही शिक्षा की असली जीत है।

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