समाजशास्त्र के विकास के चरण ( stage of development of sociology)

समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास के चरणों को निम्न क्रमानुसार प्रस्तुत किया जा सकता है :-
1-समाजशास्त्र के विकास का का प्रथम चरण:- यदि हम भारत के प्राचीन काल के इतिहास में झांक कर देखते हैं  तो हम देख पाते हैं कि यहां का इतिहास सामाजिक संबंधों ,सामाजिक अंतर क्रियाओं, सामाजिक समूह, सामाजिक प्रथाओं जैसी व्यवस्थाओं से भरा हुआ है|  पश्चिम विचारक समाजशास्त्र का प्रारंभ यूरोप से मानते हैं लेकिन ऐसामानने में वह पक्षपात  से काम लेते हैं| वस्तुतः जिस प्राचीन युग में यूरोप के निवासी सभ्यता के निम्न स्तर पर थे उस समय अपने देश में समाजशास्त्रीय ज्ञान उच्च से उच्च सीमा पर था |हमारे धर्म ग्रंथ ,उपनिषद ,रामायण ,गीता ,महाभारत ,स्मृतियां आदि इस तथ्य के स्पष्ट परिचालक हैं |की तत्कालीन समाजबेताओं, वर्ण  आश्रम व्यवस्था ,संयुक्त परिवार व्यवस्था, कर्म का सिद्धांत आदि महत्वपूर्ण संस्थाओं को विकसित किया था जो उनके उच्च सामाजिक ज्ञान का सूचक है |हां इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल में सामाजिक ज्ञान धर्म के साथ घुला मिला था| भारत में सामाजिक ज्ञान का यह स्वर्ण युग था आज की सर्वोच्च स्थिति से भी इसकी तुलना कर पाना संभव नहीं है
समाज के व्यवस्थित अध्ययन में दूसरा स्थान यूनानी विचारकों का आता है| लगभग 2300 वर्ष पहले प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक और अरस्तू ने अपनी पुस्तक एथिक्स एंड पॉलिटिक्स में अनेक सामाजिक घटनाएं जैसे पारिवारिक जीवन ,स्त्रियों की स्थिति ,प्रथाओं, सामाजिक संस्थाओं आदि का वर्णन किया है |इन यूनानी विचारकों के समाजशास्त्रीय विचार भी भारतीय विचारको के समान धर्म दर्शन आदि के साथ घुले मिले थे और उनको स्पष्ट रूप से जान पाना कठिन था|
2-समाजशास्त्र के विकास का द्वितीय चरण:-
सामाजिक घटनाओं के बारे में इसी प्रकार की कल्पनाएं वह दर्शन तेरहवीं शताब्दी तक चलता रहा| लेकिन इस समय तक को भी कुछ स्थान दिया जाने लगा| इस शताब्दी के प्रसिद्ध विचारक थामस एक्यूनस और दांतते ने समाज की परिवर्तनशील घटनाओं के अध्ययन के लिए कार्य कारण के संबंध को स्पष्ट किया| इस प्रकार विज्ञान की धुंधली सी रूपरेखा सामने आने लगी|
3-समाजशास्त्र के विकास का तृतीय चरण:-
15 वी शताब्दी के आसपास समाज के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक विधियों का आरंभ हुआ| सामाजिक जीवन और घटनाओं की बढ़ती हुई जटिलताओं के साथ-साथ विभिन्न पहलुओं के अध्ययन की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा| इसी कारण राजनीतिक शास्त्र, मनोविज्ञान ,इतिहास ,भूगोल, दर्शनशास्त्र आदि विशिष्ट सामाजिक विज्ञानों का कि हुआ |इस युग के विचारक अपने अध्ययन में एकरूपता व विदेशीकरण ने ला सके| माल्थस ,रूसो आदि को इस युग के प्रमुख विचारकों के रूप में याद किया जाता है| वास्तव में यह चरण सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को अलग अलग अध्ययन करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण था|
4- समाजशास्त्र के विकास का चौथा चरण:-
19वीं शताब्दी के प्रारंभ में फ्रांस के विचारक अगस्त काम्टे ने एक नवीन सामाजिक विज्ञान की कल्पना की जिसका नाम इन्होंने सामाजिकभौतिकीरखा|1838 में किस विचारक ने इस विज्ञान का नाम बदलकर समाजशास्त्र रखा |अगस्त काम्टे को समाजशास्त्र का जनक कहा जाता है |यह युग समाजशास्त्र को एक नवीन विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित करने का युग था 1843 में जॉन स्टूअर्ट मिल ने इस विज्ञान का परिचय इंग्लैंड में कराया |1873 में सर हरबर्ट स्पेंसर ने इसके पोषण में महत्वपूर्ण योगदान दिया और समाजशास्त्र पर प्रथम पुस्तक प्रकाशित की| 1876 में अमेरिका के येल विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का अध्ययन स्वतंत्र विषय के रूप में प्रारंभ किया गया|भारत में समाजशास्त्र का अध्ययन सबसे पहले सन् 1919 में प्रोफेसर पैट्रिक की देखरेख में मुंबई विश्वविद्यालय में प्रारंभ हुआ |सन 1923 में मैसूर विश्वविद्यालय में बीए स्तर की कक्षाओं में समाजशास्त्र को विषय के रूप में स्थान दिया| तत्पश्चात लगभग सभी प्रमुख विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में समाजशास्त्र की लोकप्रियता बढ़ती गई |

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